आज़ादी को खोने की पीड़ा।

एक राजा और तोते की कहानी


एम ओवैस

मौलाना जलालुद्दीन रूमी एक बहुत बड़े सूफ़ी संत थे। संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन द्वारा इनकी 800 वीं जयँती पर 6 सितंबर 2007 से 14 सितंबर 2007 तक इनका जन्मदिन मनाया।  मौलाना रूमी ने अध्यात्म पर एक क़िताब लिखी जिसका नाम 'मसनवी रूमी' है। इस पुस्तक में उन्होंने कहानियों की जरिये अध्यात्म की प्राप्ति का रास्ता बताया। इन्हीं कहानियों में एक कहानी एक बादशाह से संबंधित है जिसने एक तोता पाल रखा था जिससे वो बहुत प्यार करता था। राजकाज का काम समाप्त करने के बाद वो रोज़ाना अपने तोते के पास आता और उससे विभिन्न प्रकार की बातें करता। बादशाह तोते से बात करके ख़ुश होता और उसे सुकून भी हासिल होता था। बादशाह जब बाहर कहीं जाता तो वापस आने के बाद सबसे पहले अपने तोते के पास आता और अपनी अनुपस्थिति के दौरान महल में होने वाली घटनाओं की जानकारी उससे लेता। एक बार जब वो राज्य से बाहर जाने लगा तो उसे अपने तोते से कहा की मैं जब भी बाहर जाता हूँ महल के लोगों की इच्छानुसार तोहफ़े लाता हूँ। इस बार बाहर जाने वक़्त मुझे ख़्याल आया कि तुम्हारे लिए भी कोई तोहफ़ा तुम्हारी इच्छानुसार ले आऊँ। बताओ तुम्हारे लिए क्या लेकर आऊँ? तोते ने ज़वाब में कहा कि जब आप अपने सफ़र के दौरान किसी बाग़ के पास से गुज़रें जहाँ पेड़ों पर तोते मौज़ूद हों तो आप उनसे मेरा ये संदेश कह दें 'ऐ तोतों, तुम यहाँ आज़ादी के साथ रह रहे हो और मौज़-मस्ती का जीवन गुज़ार रहे हो। मैं बादशाह के यहाँ एक पिंजरे में क़ैद हूँ और क़ैदी की दुःखभरी ज़िंदगी गुज़ार रहा हूँ। मुझे बताओ कि मैं अपने पिंजरे से कैसे आज़ाद होऊँ।' तभी एक तोता पेड़ से बादशाह के पैर के पास आकर गिरा। ये देखकर बादशाह घबरा गया क्योंकि उसने समझा कि तोता मर गया है। इस बात पर उसको बहुत अफ़सोस हुआ कि उसने अपने तोते का संदेश इस बाग़ के तोतों को पहुँचाकर ठीक नहीं किया क्योंकि इसकी वजह से एक तोता मर गया। बादशाह वहाँ से अपने सफ़र पर आगे निकल गया। जब वो सफ़र के बाद अपने महल पहुँचा तो सबसे पहले तोते के पास गया। उसने अपनी अनुपस्थिति के दौरान महल में होने वाली घटनाओं की जानकारी ली। इसके बाद तोते ने बादशाह से अपना संदेश तोतों को पहुँचाने के बारे में पूछा तो बादशाह ने कहा कि उसने तोते का पैग़ाम एक बाग़ के तोतों को पहुँचा दिया था। उसके संदेश को सुनकर बाग़ के तोतों में से एक तोता उसके पैर के पास आकर गिर पड़ा। उसे मरा हुआ समझकर मुझे बहुत अफ़सोस हुआ और मैं वहाँ से अपने सफ़र पर आगे निकल गया। बादशाह की बात सुनकर पिंजरे में क़ैद बादशाह का तोता पिंजरे में गिर पड़ा। बादशाह यह देखकर घबरा गया कि अब उसके तोते को क्या हो गया? उसने पिंजरा खोलकर जल्दी से तोते को बाहर निकाला और फ़र्श पर रख दिया। इसी बीच तोता फ़र्श से उड़ गया और महल के बाहर जाने लगा। तब बादशाह ने तोते से कहा कि यह क्या माज़रा है? तोते ने ज़वाब दिया कि मैंने अपनी क़ैद से आज़ादी पाने के लिए तोतों को संदेश भिजवाया था। उस संदेश के ज़वाब में जो तोता आपके पैर के पास आकर गिरा था और जिसे आपने मरा हुआ समझ लिया था उसने मुझे संदेश दिया कि मैं भी मरने का नाटक करूँ। जिसकी वजह से मैं पिंजरे से बाहर निकाल दिया जाऊँगा। तभी यह मौका होगा कि मैं उड़कर महल से बाहर चला जाऊँ। अपने तोते की बात सुनकर बादशाह ने उससे कहा कि तुम्हे आज़ाद होना था तो मुझसे कह देते मैं तुम्हे आज़ाद कर देता। तब तोते ने कहा कि बादशाह सलामत आप मुझे आज़ाद नहीं करते क्योंकि आप मुझसे बहुत प्यार करते हैं। इसीलिए मैंने तोतों के पास संदेश भिजवाया था कि मैं कैसे आज़ाद हो जाऊँ और उनके संदेश को पाकर मैंने ये कोशिश की और क़ामयाब हुआ। इस कहानी से मालूम होता है कि कोई तोता पिंजरे में कैद की ज़िंदगी नहीं गुज़ारना चाहता है। चाहे वह पिंजरे में कितने दिन भी रहे और उसे पालने वाला उसको कितना भी प्यार दे।

आज मैं 22 साल की हो गई हूँ लेकिन गहरे दुःख और आँखों में आँसुओं के साथ मैं बता रही हूँ कि मेरे 22 वर्ष की आयु में मेरे 20 वर्ष बंदी के तौर पर गुज़रे और अब भी मैं बंदी का दुःख झेल रही हूँ। दूसरे शब्दों में मेरा पूरा जीवन बंदी के तौर पर गुज़रा और मैं नहीं जानती की आज़ादी क्या होती है क्योंकि अपनी पैदाइश के दो वर्ष बाद मुझे अपने माता-पिता और अपने समाज से एक लालची बहेलिये द्वारा अलग कर दिया गया जो परिंदों को पकड़कर उनकी तिज़ारत (क़ारोबार) करता है। अब आप सभी लोग मेरी आज़ादी को खोने की पीड़ा को समझ सकते हैं। मेरा सारा जीवन ये सोचते हुए दुःख और पीड़ा में गुज़रा कि क्या मैं कभी आज़ाद हो पाऊँगी और आज़ादी की फ़िज़ा (माहौल) में साँस ले पाऊँगी। मेरा हर दिन आँखों में आँसू के साथ सोचते हुए गुज़रा कि मेरा कभी ना ख़त्म होने वाला बंदी का जीवन आज़ादी के जीवन में बदल पाएगा? वास्तव में मैं ना तो आज़ादी का मतलब जानती हूँ और ना ही आज़ादी का एहसास। लेकिन मैं आज़ादी के सुख और आनन्द की कल्पना कर सकती हूँ। जिससे मैं वंचित कर दी गई हूँ और आज़ादी के सुख और आनंद को भोग नहीं सकती। आप सभी लोग जो मेरी इस कहानी को सुन रहे है वें भलीभाँति आज़ादी, स्वतंत्रता और मुक्ति का अर्थ जानते हैं। आप सभी लोग आज़ादी, स्वतंत्रता और मुक्ति के माहौल में आनंद उठा रहे है। अगर आपको आज़ादी, स्वतंत्रता और मुक्ति के माहौल से एक दिन भी वंचित कर दिया जाए तो इनके बिना आप एक दिन भी जीवित नहीं रह सकते। आप लोग आज़ादी, स्वतंत्रता और मुक्ति के लिए लड़ाई शुरू कर देते हो और इन्हें पाने के लिए बेचैन रहते हो। आज़ादी, स्वतंत्रता और मुक्ति प्राप्त करने से संबंधित आपकी लड़ाई कामयाब हो जाती है और आप इसे प्राप्त करने में सफ़ल हो जाते हैं। ये बड़े दुःख की बात है कि मैं अपने बंदी होने का विरोध नहीं कर सकती इसलिए मैं अपनी आज़ादी हासिल नहीं कर सकती। इसलिए कि मैं इंसान नहीं हूँ बल्कि एक तोती हूँ जिसे जबरन बंदी बनाकर रखा गया है जिसे ये मालूम नहीं कि अपनी आज़ादी, स्वतंत्रता और मुक्ति से वंचित कर दिए जाने का विरोध कैसे करूँ? मुझे बंदी बना लिए जाने के बाद इंसान को मेरी आज़ादी खोने का एहसास तक नही होता। इसके विपरीत वह मुझे पिंजरे में रखकर ख़ुश होता है। इस प्रकार मुझे पिंजरे में देखकर उसे संतुष्टि प्राप्त होती है। इंसान इतना क्रूर है कि वो हमें (तोतों) को खरीद कर घर लाता है और फिर हमें पिंजरे में क़ैद कर देता है। जिसके कारण एक तरफ़ तो हमें अपनी आज़ादी से महरूम कर दिया जाता है और दूसरी तरफ़ हमें तकलीफ़ और यातनाएँ सहने के लिए मज़बूर कर दिया जाता है। पिंजरे में जो हमें सबसे ज़्यादा तक़लीफ़ और यातना सहनी पड़ती है वो हमारा लगातार खड़ा रहना होता है। क्योंकि हम जबतक पिंजरे में रहते हैं तबतक हमें खड़े होने वाली तक़लीफ़ और यातना को सहना पड़ता है जोकि असहनीय होती है। हम इस तक़लीफ़ और यातना को ख़ामोशी से सहते रहते हैं क्योंकि हमें अपनी तक़लीफ़ के ख़िलाफ़ विरोध करना नहीं आता। इंसान हमारी इस तक़लीफ़ के बारे में बिलकुल नहीं सोचता बल्कि इसके विपरीत वो समझता है कि हम इस पिंजरे में हँसी-ख़ुशी से रहते हैं। काश! कि इंसानों को हमारे पैरों की तक़लीफ़ और यातना को किसी तरह कोई बताता ताकि लोग हमें पिंजरे में क़ैद करके पालना छोड़ दे। जब हम आज़ाद होते हैं तो हम लगातार कभी खड़े नहीं रहते हैं। हम दिनभर इधर-उधर उड़ते रहते हैं और रात को अपने ठिकाने पर खड़े होकर सोते है। ऐसी स्थिति में हमें लगातार खड़े होने की तक़लीफ़ और यातना नहीं सहनी पड़ती है।

 


 

यहाँ मैं इंसानों से सवाल करती हूँ कि वो बगैर किसी तकलीफ और यातना सहे बिना कितनी देर अपने पैरों पर खड़े रह सकते हैं? इस कहानी के ज़रिये ये निश्चित है कि इंसान इस नतीजे पर पहुँचेगा कि हम जैसे नन्हे परिंदों को पिंजरे में क़ैद नहीं रखना चाहिए। क़ैद में रहने के दौरान मैं हर वक़्त ये सोचती हूँ कि मैं आज़ाद कैसे हो जाऊँ? मेरे बहुत से साथी भाग्यशाली हैं, जिन्हें क़ैद से निकल भागने का मौका मिला। वें अपने समाज में जा मिले और आज़ादी का जीवन गुज़ारने लगे। ये दुःख की बात है कि इंसान तोते को पिंजरे में क़ैद करने के बाद उन्हें अपनी इच्छा से आज़ाद नहीं करता। सवाल यह उठता है कि हम तोतों को क़ैद में रखने के लिए कौन ज़िम्मेदार है? इसका बिलकुल सीधा जवाब यह है कि वो लोग इसके ज़िम्मेदार है जो तोतों को ख़रीदकर पिंजरे में रखते हैं और इस तरह तोतों को एक आदमी बेचता है और दूसरा उनको ख़रीदता है। इस प्रकार तोतों की क़ैद की ज़िन्दगी की शुरुआत होती है इसलिए इंसानों से मेरा यह अनुरोध है कि वें तोतों को पिंजरे में क़ैद में रखने की इच्छा को त्याग दें ताकि सभी तोतें आज़ादी से रह सके और उन्हें अपनी आज़ादी से वंचित न किया जाए। मुझे आशा है कि मेरे इस अनुरोध को ठुकराया नहीं जाएगा और सभी इंसान ना सिर्फ़ मेरे इस अनुरोध का सम्मान करेंगे बल्कि अपने दूसरे साथियों से भी मेरे इस अनुरोध पर ध्यान देने के लिए कहेंगे। 

जब पिंजरे में मैं अपने आज़ादी के दिनों को याद करती हूँ तो मुझे बहुत मायूसी होती है और तब अपनी क़ैद को याद कर और आज़ाद ना हो पाने की अपनी बेबसी को सोचकर मेरा दिल रो पड़ता है। जब मैं आज़ाद थी और इसका आनंद ले रही थी और अपने साथियों के साथ हँसी-ख़ुशी रह रही थी तो उस समय मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं क़ैद कर ली जाऊँगी और पिंजरे में बंद कर दी जाऊँगी। उस समय मैं अपने परिवार और अपने साथियों के साथ रहती थी और इधर-उधर हँसी-ख़ुशी उड़ती-फिरती थी। सुबह उठने के बाद मैं अपने परिवारवालों और अपने साथियों के साथ खाने की तलाश में दूर निकल जाती थी और कोई बाग़ मिलने पर हम सब पेड़ों पर उतर जाते और वहाँ जो कुछ खाने को मिलता हम खाते। इस दौरान हम आपस में हँसी-मज़ाक भी करते। कभी हम अपने साथियों से लड़ते और जब कोई साथी नाराज़ हो जाता तो उसकी नाराज़गी को दूर करने की कोशिश करते और जब उसकी नाराज़गी ख़त्म हो जाती तब हम ख़ुश हो जाते। कभी-कभी हम झुँड में गीत गाते और कभी हम अपने परिवारवालों से बात करते और कभी हम अपना सुख-दुःख आपस में बांटते। यह वो समय था जब हम जहाँ चाहते वहाँ उड़कर चले जाते। उस वक़्त हम पर कोई पाबंदी नहीं होती थी। यद्दपि उन दिनों हमें बिल्ली, बाज़, चील और साँप जैसे अपने दुश्मनों का शिकार बन जाने का डर लगा रहता था। फिर भी हम ऐसे माहौल में रहकर ख़ुश थे। इसके अलावा हम हर मौसम की सख़्तियों को भी झेलते थे। इन सब के बावजूद हम ख़ुश रहते थे और हम अपनी आज़ाद ज़िन्दगी गुज़ारने के लिए ईश्वर के शुक्रगुज़ार थे। वास्तव में आज़ादी ईश्वर के सभी जीवों के लिए बहुत क़ीमती चीज़ है। इंसान को आज़ादी पसंद होती है इसलिए वो आज़ाद रहना चाहता है। 

अब जबकि मैं क़ैद का जीवन गुज़ार रही हूँ तो ऐसी स्थिति में मैं अपनी आज़ादी के बारे में सोचती हूँ और मेरी इच्छा है कि मैं अपने पिंजरे से बाहर आकर आसमान की ऊँचाइयों पर उडूं और अपने साथियों के पास जाकर उनके साथ समय बिताऊँ। यह स्थिति बहुत ही आनंदपूर्ण है जिन्हें शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। मुझे इस आनंदपूर्ण स्थिति से वंचित कर क़ैद में डाल दिया गया है। मैं ख़ुद से सवाल करती हूँ कि क्या मैं कभी आज़ाद हो पाऊँगी। यह सवाल मैं अपने आप से बार-बार करती हूँ। लेकिन मुझे इस सवाल का ज़वाब नहीं मिलता। मैं यह मान चुकी हूँ कि मेरा अब सारा जीवन क़ैद में ही गुज़रेगा। इस प्रकार मैं सोचती हूँ कि दुनिया के सभी तोतों में मैं सबसे दुर्भाग्यशाली हूँ जो क़ैद में इतना लम्बा जीवन गुज़ार दे और मर जाए। मैं आप सबको यह बताना चाहती हूँ कि पिंजरे में मेरी क़ैद की ज़िंदगी दुखदायी नहीं रही है क्योंकि जिस व्यक्ति ने मुझे पाला वो बाजार से एक तोता ख़रीद लाया और उसे मेरे पिंजरे में डाल दिया। एक-दो दिनों में हम दोनों दोस्त बन गए और इस प्रकार मेरा अकेलापन ख़त्म हो गया और अब मैं ख़ुशी के साथ रहने लगी। यह दुर्भाग्य की बात है कि मेरी खुशियाँ जल्दी ख़त्म हो गई क्योंकि मेरा साथी उस समय छत के पँखे से टकराकर मर गया जब वो पिंजरे से बाहर था। आप कल्पना कर सकते हैं कि मैं अपने साथी के मरने पर कितनी दुखी हुई होऊँगी। मेरा अकेलापन फ़िर शुरू हो गया और मैं ये सोचने लगी कि मेरा ये अकेलापन ज़िन्दगी भर रहेगा। लेकिन ईश्वर का शुक्र है कि मुझे पालने वाला व्यक्ति एक और तोता ले आया और उसे मेरे पिंजरे में डाल दिया। हम दोनों जल्दी दोस्त बन गए। तब मुझे लगा कि आज़ादी खोने की पीड़ा समाप्त हो गई। मेरा नया साथी मुझे बहुत प्यार करता था और उसके प्यार ने मेरे पिछले सभी दुखों को भुला दिया। अपने नए साथी के साथ मेरे अगले 10 साल ख़ुशी के साथ गुज़र गए। इस दौरान मैं अपनी क़ैद की ज़िन्दगी को भूल गई क्योंकि मैंने अपने नए साथी के साथ ज़िंदगी गुज़ारने का लुत्फ़ उठाया। मैं सोचती थी कि ख़ुशी के मेरे ये दिन हमेशा रहेंगे लेकिन मेरी ये सोच ग़लत साबित हुई क्योंकि मेरा ये दूसरा साथी मेरे साथ 10 साल रहने के बाद एक दिन पिंजरे से भाग गया जिससे मेरे दिल पर ऐसी गहरी चोट लगी जिसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। अब मैं ग़हरी निराशा का सामना कर रही हूँ और इस नतीजे पर पहूँची हूँ कि मेरा बाकी सारा जीवन इस पिंजरे में अकेले ही गुज़रेगा। मैं ये सोचती हूँ कि मेरा नया साथी बहुत ही भाग्यशाली था जोकि पिंजरे से निकल भागने के प्रयास में सफ़ल हो गया। मैं दुआ कर रही हूँ कि वह दोबारा पकड़ा ना जाए और ना ही पिंजरे की क़ैद में रखा जाए। आप लोग यह कल्पना भी नहीं कर सकते कि मैं कितनी दुखी हूँ। अब मैं अपने नए साथी के साथ गुज़ारे दिनों को याद करके बिता रही हूँ और मेरी हालत यह हो गई कि मेरे आसपास होने वाली घटनाओं का मुझे एहसास तक नहीं हो रहा। अब मैं पिंजरे से निकल भागे अपने साथी को हर समय याद करती हूँ और उसे बुलाती रहती हूँ कि वो मेरी आवाज़ सुन लेगा और वो एक दिन मेरे पास आ जाएगा। उसे अपने पिंजरे में ना पाकर मेरा दिल बेहद दुखी हो जाता है और तब मेरा दिल उसके लिए रो पड़ता है और घंटों मैं बिलख़ती रहती हूँ। वास्तव में उससे अलग होने के बाद मेरी दुनिया सुनसान हो गई है। मेरा जीवन अब कितना बाक़ी है यह तो ईश्वर जानता है? लेकिन मैं अपने साथी के बग़ैर कैसे रहूंगी? अब मेरे साथी को मुझसे अलग हुए 2 महीने गुज़र गए हैं लेकिन वो अब भी मेरे पास वापस नहीं आया। इस स्थिति में मैं सोचती हूँ कि मै क्यों नहीं अपने साथी के पास उड़कर चली जाऊँ लेकिन मैं उड़ने में असमर्थ हूँ फिर भी मैं उड़ने की कोशिश करती हूँ। मेरी यह बहुत ही दयनीय स्थिति है कि मैं उड़ भी नहीं सकती। इससे मैं और ज़्यादा दुखी हो जाती हूँ कि मैं अपने साथी के पास उड़कर नहीं जा सकती। बात यह है कि 22 साल पहले जब मुझे पालने वाला व्यक्ति मुझे ख़रीदकर अपने घर लाया तो उसने मेरे परों को क़तर दिया। उसी समय से मैं उड़ने में असमर्थ हो गई और फ़िर मैंने ये समझ लिया कि अब मैं कभी उड़ नहीं सकती क्योंकि उसके बाद मैंने कभी उड़ने की कोशिश भी नहीं की। इस बीच मुझे अपने पालने वाले व्यक्ति से गहरा लगाव हो गया जिसके ज़वाब में वह भी मुझे चाहने लगा। इसलिए भी मैंने कभी उड़कर निकल जाने का विचार नहीं किया। अब मैं उड़कर निकल जाने की कोशिश कर रही हूँ लेकिन मैं उड़ नहीं पा रही हूँ। वास्तव में मुझे पालने वाला व्यक्ति मुझे पिंजरे से हमेशा बाहर निकाल देता था। काश! मैं उड़ने में समर्थ होती और अपने साथी के पास पहुँच जाती। अपने साथी के पिंजरे से निकल भागने के बाद पिंजरे में मेरा अकेले रहना असंभव होता जा रहा है। लेकिन मुझे पालने वाला व्यक्ति हर समय यह दिलासा देता रहा कि टीना मायूस मत हो तुम्हारा सिकंदर (साथी) एक दिन तुम्हारे पास वापस ज़रूर आएगा। अपने पालने वाले की इन बातों को सुनकर मुझे कुछ सुकून मिलता और मैं सोचती कि मेरा सिकंदर एक दिन वापस ज़रूर आएगा। मुझे पालने वाला व्यक्ति शुरू से ही मुझे बहुत प्यार करता था और मेरी बहुत देखभाल करता था। अब वो सिकंदर के जाने के बाद अपना सारा समय मेरे साथ गुज़ारता है ताकि मैं अकेलापन महसूस ना करूँ। वो सिकंदर को भी मेरी तरह बहुत प्यार करता था इसलिए वो भी सिकंदर के चले जाने के बाद बहुत दुखी है और मैंने सिकंदर की याद में उसको रोते हुए भी देखा है।

लेखक बहुभाषी समाचार न्यूज एजेंसी हिन्दुस्थान समाचार सेवा से जुड़े हुए हैं।