कमिश्नर और IPS की भूमिका पर सवालिया निशान
इंद्र वशिष्ठ
तब्लीगी जमात और मरकज को कोरोना फैला कर देश को मरघट तक बनाने का दोषी ठहराया जा रहा है लेकिन सिर्फ मरकज को दोषी करार देकर पुलिस और सरकारों की नाकामी पर पर्दा डालना भी सही नहीं हैं। मरकज के मुखिया मौलाना साद का यह जघन्य अपराध किसी भी तरह से माफ़ी के काबिल नहीं हैं। इन मौलाना ने न केवल अपने तब्लीगी जमात के भाइयों और अपनी क़ौम की जान को ख़तरे में डाला बल्कि पूरे देश के लोगों की जान से खिलवाड़ किया है। इस मौलाना के जाहिलपन के कारण मुस्लिमों को देश भर में दुश्मन की तरह देखा जा रहा है और इस क़ौम को ही महामारी फैलाने का जिम्मेदार माना जा रहा है।
लेकिन पुलिस ने अगर समय पर कार्रवाई की होती तो कोरोना संकट का रुप इतना भयावह न हो पाता और न ही इतना हड़कंप मचा हुआ होता।
निजामुद्दीन मरकज मामले में तब्लीगी जमात तो दोषी है ही लेकिन सिर्फ जमात को दोष देने से पुलिस का दोष खत्म नहीं हो जाता।
निजामुद्दीन थाने के एसएचओ द्वारा रिकॉर्ड किए गए वायरल वीडियो से भी यह साफ़ हो जाता है कि दिल्ली पुलिस ने इस मामले में जबरदस्त लापरवाही बरती है।
वीडियो में एसएचओ मुकेश वालिया खुद यह बात कह रहे है कि मरकज की गतिविधियों के बारे में इंटेलिजेंस और बड़े अफसरों को जानकारी है। तो ऐसे में अफसर भी जिम्मेदार हैं।
एसएचओ मुकेश वालिया 24 मार्च को मरकज वालों को मरकज खाली करने का नोटिस देते है। जबकि मरकज के लोग एसएचओ से साफ़ कहते हैं कि लॉक डाउन के कारण हम इतने लोगों को कैसे यानी किस तरह निकाले, गाड़ियों के पास के लिए एसडीएम से संपर्क किया है।
एसएचओ उनसे एसडीएम से बात करने को कहते हैं। मरकज वाले एसएचओ से एसडीएम का नंबर मांगते तो एसएचओ नाराज़ हो कर कहते है कि क्या आपको एसडीएम का नंबर भी नहीं मालूम है। फिर अचानक शायद एसएचओ को याद आया होगा कि रिकार्डिंग हो रही है तो वह कहते हैं कि एसडीएम का नंबर देता हूं।
मरकज वालों ने नोटिस के बाद भी मरकज से लोगों को नहीं हटाया था तो पुलिस को खुद ही उनको वहां से हटाने का इंतजाम करना चाहिए था जैसा कि नोटिस दिए जाने के कई दिनों बाद 30 मार्च को भी तो किया गया। इस वीडियो में एसएचओ का हड़का कर बात करने का लहजा ऐसा है जैसे कि वह किसी संस्था के नुमाइंदों से नहीं बल्कि अपने ग़ुलाम सिपाहियों से बात कर रहा है।
सच्चाई यह है कि ज्यादातर एसएचओ आम आदमी से सीधे मुंह बात तक नहीं करते हैं। इस वीडियो से तो यही लगता है कि एसएचओ ने इस लहज़े में यह सिर्फ इसलिए रिकॉर्ड किया ताकि अपने अफसरों को दिखाया जा सके कि उसने कितनी सख्ती से मरकज वालों को मरकज खाली करने को कहा है।
सच्चाई यह है पुलिस के आला अफसर और एसएचओ में अगर वाकई पेशेवर काबिलियत होती और कोरोना की गंभीरता को समझते तो मरकज में परिंदा भी पर नहीं मार सकता था।
मरकज में हजारों लोगों की उपस्थिति के लिए पुलिस अफसर जिम्मेदार हैं। एक तो पुलिस ने उनको हजारों की संख्या में मरकज में जमा होने दिया, दूसरा इनको वहां से तुरंत निकालने की व्यवस्था नहीं की। मौलाना और उनके 6 साथियों के खिलाफ एफआईआर भी 31 मार्च को दर्ज की है।
थाने से सटे हुए मरकज में जो हुआ उसके लिए सबसे पहले तो एसएचओ ही जिम्मेदार है। आला अफसरों को तो सबसे पहले इस एसएचओ मुकेश वालिया के खिलाफ ही कार्रवाई करनी चाहिए थी जिसने अगर ईमानदारी से अपने कर्तव्य का पालन किया होता तो कानून का उल्लघंन करने वाले हजारों लोग मरकज में जमा ही नहीं हो सकते थे। इससे आईपीएस अफसरों की पेशेवर काबिलियत और भूमिका पर भी सवालिया निशान लग गया है।
दिल्ली में फरवरी में हुए दंगों के बाद तक भी पुलिस ने धारा 144 पूरी दिल्ली में लगाईं हुई थी। कोरोना के मामले सामने आने पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 13 मार्च को आदेश जारी कर 200 से ज्यादा लोगों के जमा होने पर रोक लगाने का आदेश जारी किया। अरविंद केजरीवाल ने 16 मार्च को दूसरा आदेश जारी कर 50 से ज्यादा लोगों के इकठ्ठा होने पर रोक लगाने का आदेश जारी कर दिया।
इसके बावजूद मरकज में हजारों लोगों का जमावड़ा पुलिस की जबरदस्त लापरवाही और निक्कमापन ही दिखाता है।
प्रधानमंत्री ने 22 मार्च को एक दिन के जनता कर्फ्यू का ऐलान किया। उसके बाद अरविंद केजरीवाल ने 31 मार्च तक दिल्ली में लॉक डाउन लागू किया।
इसके बाद प्रधानमंत्री ने 25 मार्च से 21 दिन के लॉक डाउन की घोषणा की।
पुलिस ने धारा 144 और दिल्ली सरकार के लोगों के जमा होने पर रोक के दोनों आदेश का जमकर उल्लंघन होने दिया और मरकज वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई नहीं की। लॉक डाउन लागू होने के बाद भी पुलिस ने मरकज को तुरंत ख़ाली कराने की कार्रवाई नहीं की। पुलिस महामारी के भयंकर संकट के दौर में भी सिर्फ मरकज वालों को नोटिस थमा कर चेतावनी देकर अपनी खानापूर्ति करती रही।
पुलिस ने तो मौलाना साद के खिलाफ एफआईआर भी उप राज्यपाल के आदेश के बाद दर्ज की है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने उपराज्यपाल से एफआईआर दर्ज कराने के लिए कहा था। मौलाना तो दोषी है ही लेकिन पुलिस का भी दोष कम नहीं है बल्कि पुलिस का दोष इस मायने में ज्यादा है क्योंकि पुलिस का कर्तव्य है लोगों की जान की सुरक्षा करना और लोगों की जान को ख़तरे में डालने वाले के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करना। पुलिस अपने यह दोनों ही कर्तव्य का पालन करने में बुरी तरह नाकाम रही है।
लॉक डाउन लागू होने के बाद मरकज वाले चाह कर भी खुद बिना पुलिस और सरकार की मदद और व्यवस्था के मरकज से बाहर नहीं निकल सकते थे। पुलिस और सरकार ने मरकज को खाली कराने में बहुत देर कर दी जिसका खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ रहा है।
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल द्वारा 28-29 मार्च को आधी रात को मरकज के मौलाना से मिलना। इसके बाद मरकज से लोगों को निकालना शुरू करना। अजीत डोभाल के समझाने के बाद खाली कराये गए मरकज में उस समय तकरीबन 2361 जमाती मौजूद थे। उल्लेखनीय है कि दिल्ली पुलिस कमिश्नर आईपीएस अफसरों के हाथ से मामला निकलता देख देश के गृहमंत्री अमित शाह ने अजीत डोभाल को मरकज के काम में लगाया था। इससे पता चलता है कि क्या दिल्ली पुलिस कमिश्नर एस.एन. श्रीवास्तव और वरिष्ठ आईपीएस अफसर इस मामले से निपटने में नाकाम हो गए थे? क्या पुलिस कमिश्नर और वरिष्ठ आईपीएस अफसर मरकज जैसे मामले को अपने स्तर पर सुलझाने के काबिल नहीं हैं ? अगर ऐसा है तो यह बहुत ही चिंताजनक बात है इस मामले ने आईपीएस अधिकारियों की पेशेवर काबिलियत पर सवालिया निशान लगा दिया है। मरकज के मुखिया का एफआईआर दर्ज होने के बाद फरार हो जाना भी पुलिस की भूमिका पर सवालिया निशान लगाते हैं। दिल्ली में दंगों के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल दंगा ग्रस्त इलाकों में गए थे। उस समय दिल्ली पुलिस के पूर्व कमिश्नर बृजेश कुमार गुप्ता तक ने कहा था कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल को अगर सड़कों पर उतरना पड़ा है तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है। अब ऐसे में मरकज के मामले में भी अजीत डोभाल के जाने से एक बार फिर पुलिस कमिश्नर और आईपीएस अधिकारियों की नाकामी उजागर हुई है।