राजनीतिक स्तर पर समाज को जागरूक किया जाये

मो. अशरफ कमाल
नई दिल्ली। कल तमसीली मुशायरे के साथ जामिया मिल्लिया इस्लामिया के “यौम-ए-तासीस” यानी स्थापना दिवस समारोह का समापन हुआ; आज कैंपस में 4-5 जामिया के स्टाफ़ आपस में बात कर रहे थे, के अब वो बात रही नही, बच्चों को तमसीली मुशायरा का पता नहीं, उपर से वो हूटिंग और बदतमीज़ी करते हैं, तब ही उनकी बात काटते हुवे दुसरे साहब कहते हैं, के ये हूटिंग और बदतमीज़ी करने वाले सारे ग़फ़ूर नगर, अज़ीम डेरी और बाहर के लोग हैं, और कैंपस में आने से इन्हे गार्ड रोकते भी नहीं!


तब ही मैने उनसे पुछा के ज़रा “यौम-ए-तासीस” के मौक़े पर होने वाले 'तालीमी मेला' का मक़सद बताये? वो बताते उससे पहले ही मैने उन्हे बता दिया के जामिया के “तालीमी मेला” का ख़ास मक़सद कम्यूनिटी को जामिया के साथ जोड़कर चलना रहा है, हर डिपार्टमेंट को अपनी कारगुज़ारी पेश करनी होती है, साथ ही उसकी नुमाईश होती है, जिससे ना सिर्फ़ वहां पढ़ रहे स्टूडेंट का हौसला बढ़ता है, बल्के बाहर से आये लोग भी प्रेरित होते हैं. और यहां कम्यूनिटी का मतलब ग़फ़ूर नगर, अज़ीम डेरी और आस पास के लोग ही हैं, जिनके बारे में आप कह रहे के ये बदतमीज़ हैं. यहां ग़लती जामिया और उससे जुड़े लोगों कि है, जिन्होंने अपने मक़सद को भुला दिया. कम्यूनिटी के बीच जाते हैं नही, जामिया का मक़सद और मतलब लोगों को बताते नहीं; उपर से अब तो जामिया प्रशासन भी 'तालीमी मेला' अच्छे से आर्गेनाइज़ नहीं करता है! चुंकि हमारे यहां बच्चों कि कॉउंसलिंग तो होती नहीं है, के उन्हे जीवन में करना क्या है, कोर्सेज़ के बारे में पता नहीं है, पर 'तालीमी मेला' कि मदद से बच्चों को काफ़ी कुछ जानने को मिलता है! 


“तालीमी मेला” जामिया की एक प्राचीन परम्परा रही है जिसे हर वर्ष “यौम-ए-तासीस” पर आयोजित किया जाता रहा है. तालीमी मेले के बारे में अफ़रोज़ आलम साहिल ने प्रोफ़ेसर मुजीब साहब के हवाले से एक जगह लिखा है —“इन तारीखों में और इससे 10-15 दिन पहले पूरे जामिया में सरगर्मी, तैयारी और मंसूबाबंदी का माहौल रहा. मेले से पूर्व हर विभाग अपने अपने कामों को मंज़र-ए-आम पर लाने के लिए बेताब थे. तरह-तरह के विज्ञापन बन रहे थे, कमरों में नुमाइश के लिए सामान सजाया जा रहा था, यानी जामिया बिरादरी का हर शख़्स किसी न किसी काम को अपने ज़िम्मे लेकर दिन रात इसी फ़िक्र में डूबा रहता. ड्रामों का अभ्यास, संगीत के सुर और खेलकुद के आईटमों के अभ्यास में तेज़ी आ गई थी. ऐसा प्रतीत होता था कि क़ुदरत ने मदद की गरज़ से नींद का क़ानून रात के लिए वापस ले लिया हो. रात गुज़री, सुबह हुई और मेले का बाज़ार गरम हुआ.”


बता दें कि जामिया मिल्लिया इस्लामिया सिर्फ़ एक शैक्षिक संस्थान ही नहीं, बल्कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति का प्रतीक भी है. यह उन सरफ़िरों का दयार है जिनकी मेहनत ने अविभाजित भारत को गरमाहट और उर्जा प्रदान की और अपने खून से सींचकर जामिया की पथरीली ज़मीन को हमवार किया. जामिया के दरो-दीवार आज भी उनकी यादों को संजोए हुए हैं और उज्जवल भविष्य के लिए खेमाज़न होने वाले उन दीवानों को जिन्होंने अपने मुक़द्दर को जामिया के लिए समर्पित कर दिया, ढूंढ रहे हैं. भाईचारा, मुहब्बत, इंसानियत दोस्ती के उन मतवालों के सामने देश की एकता एवं विकास सर्वोपरि था, ताकि सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक के साथ-साथ राजनीतिक स्तर पर समाज को जागरूक किया जा सके.