उत्तरी-पूर्वी दिल्ली सीट से बसपा प्रत्याशी राजवीर सिंह का धुआंधार प्रचार जारी


इन्द्र मोहन सिंह
नई दिल्ली। उत्तरी-पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट से बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के प्रत्याशी राजवीर सिंह का कहना है कि इस लोकसभा सीट पर मामला चतुष्कोणीय नहीं, बल्कि त्रिकोणीय रह गया है, क्योंकि चुनावी मैदान में आम आदमी पार्टी का कोई जनाधार बाकी नहीं बचा है। दरअसल, आप के सर्वेसर्वा एवं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपने चिकने-चुपड़े वादों एवं शब्दजाल में फंसाकर बसपा के जिन कोर वोटरों को अपने पाले में खींच ले गए थे, उन वोटरों की दुबारा बसपा में घर वापसी हो गई है। दरअसल, इन वोटरों को ठगे जाने का एहसास हो गया है, क्योंकि जिन वादों के प्रलोभन में फंसाकर इन्हें आप ने खींचा था, उनमें से एक भी वादा पूरा नहीं किया गया। ऐसे में यहां अब आप के हाथ निल बटा सन्नाटा ही लगने वाला है और वह यहां के चुनावी दृश्य से ही गायब हो चुकी है। ऐसे में यहां असली मुकाबला कांग्रेस-भाजपा और बसपा के बीच रह गया है। यह बातें उन्होंने शुक्रवार को भजनपुरा के भगत सिंह चौक पर आयोजित जनसभा में कहीं।
राजपीर सिंह ने कहा कि अरविंद केजरीवाल जिस अन्ना आंदोलन की उपज माने जाते हैं, उन पर उसी आंदोलन को हाईजैक कर अपना सियासी हित साधने का आरोप जगजाहिर है। यहां तक कि उन्होंने अपनी सरकार बनते ही लोकपाल लाने की बात की थी। सरकार के आने के बाद पूर्व की कांग्रेस सरकार के घोटालों की फाइल खोलने के साथ उपलब्ध सबूतों के आधार पर तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को जेल भेजने की बात की थी। दिल्ली को पेरिस बनाने का वादा किया था। लेकिन, वह अपने तमाम वादों पर नाकाम साबित हुए। उनके सभी वादों एवं दावों की कलई खुल चुकी है। इसलिए इस बार उनकी कोई भी दलील या वादे-दावे काम नहीं कर पाएंगे और चुनाव में उन्हें बुरी तरह मुंह की खानी पड़ेगी। तभी तो खुद अरविंद केजरीवाल अपनी हार यह कहते हुए स्वीकार कर चुके हैं कि उनकी पार्टी को पांच-छह सीटों से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। अब आप ही सोचिए कि जिस पार्टी का पूरे देश में भी पांच सीट न हो, वह ऐसी बात कैसे कर सकता है। केजरीवाल का यह बयान ही बताता है कि वह अपनी चुनावी हार पहले ही स्वीकार कर चुके हैं। बाकी 23 मई को पूरा देश भी उनकी बात पर मुहर लगा ही देगा।
भजनपुरा के बाद मुस्तफा बाद के संजय चौक में आयोजित जनसभाओं में कांग्रेस और भाजपा को लपेटते हुए राजवीर सिंह ने कहा कि दोनों पार्टियां हिंदू-मुस्लिम की राजनीति करती हैं, लेकिन दुर्भाग्य है कि दोनों चुनावी माहौल के तहत मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण का प्रयास भी करती हैं। मुस्लिम वोटरों को लुभाने एवं अपने-अपने पक्ष में करने के लिए ये पार्टियां कोई भी तिकड़म करने से नहीं चूकतीं और एक से बढ़कर लुभावने वादे करती हैं। मुस्लिम वोटरों के लिए अलग से जनसभाएं आयोजित करती हैं, ताकि इनका वोट बटोरा जा सके। लेकिन, मुस्लिम समुदाय चौंकन्ना हो गया है। वे इनके झांसे में नहीं आनेवाले हैं। तभी तो कांग्रेस और भाजपा के प्रत्याशी जहां मुस्लिम समाज के साथ बैठकें करने पर जोर दे रहे हैं, वहीं बसपा की नीतियों एवं पार्टी सुप्रीमो बहन मायावती के काम करने के तरीकों से प्रभावित होकर मुस्लिम समाज हमारे पक्ष में बैठकें आयोजित कर हमें बिना शर्त समर्थन दे रहा है। इस समाज का यह प्यार और समर्थन इस चुनाव में जहां हमारे लिए रामवाण साबित होगा, तो कांग्रेस-भाजपा के लिए जहर समान होगा।
18 अप्रैल को नामांकन दाखिल करने के बाद से ही सघन प्रचार अभियान छेड़ कर सर्वसमाज का भरपूर समर्थन पाने वाले राजवीर सिंह का कहना है कि 10 मई को बसपा सुप्रीमो बहन मायावती उत्तरी-पूर्वी दिल्ली इलाके में महारैली करके चुनावी फिजां को पूरी तरह बदल देंगी। इस रैली की तैयारी जोर-शोर से चल रही है। स्थानीय स्तर के सभी नेता-कार्यकर्ता दिन-रात अपने-अपने काम में जुटे भी हैं। रैली के लिए आम जनता को भी मैसेज चला गया है। जनता, खासकर पार्टी से नए-नए जुड़े लोग रैली को लेकर बेहद उत्साहित हैं। हमें यकीन है कि बसपा की यह रैली अनूठी होगी, क्योंकि इसमें भारी भीड़ जुटने की उम्मीद है।
राजवीर सिंह कहते हैं कि उन्हें सर्वसमाज का साथ और समर्थन मिल रहा है। इसके पीछे वह तर्क देते हैं कि बसपा जाति-धर्म की राजनीति नहीं करती है। यह सर्वसमाज की पार्टी है। इसका सबूत आपको पूरे देश में मिल जाएगा, जहां बसपा के सिंबल पर हर जाति-धर्म के प्रत्याशी चुनाव मैदान में खड़े हैं। बसपा कभी भी जाति के हिसाब से प्रत्याशी खड़े नहीं करती है। यहां तक कि ऐसे भी उदाहरण मिल जाएंगे कि ऐसे क्षेत्र में जहां किसी खास जाति के वोटर की बहुलता है, वहां भी बसपा ने उस जाति के बदले दूसरी जाति का प्रत्याशी खड़ा किया है और जीत भी हासिल की है। दरअसल, बसपा की अपनी खास विचारधारा है, जो जाति-धर्म और गैरबराबरी की राजनीति नहीं करती है। यही वजह है कि लोग, बसपा की नीतियों, सिद्धांतों एवं काम करने के तौर-तरीकां को पसंद करते हैं और अपना वोट इसे देते हैं।