एक्यूट लीवर फेलियर से पीडित रोगियों का उपचार: डॉ. मल्होत्रा

नई दिल्ली। विल्सन रोग एक स्थिति है जिससे शरीर में कॉपर प्वॉयजनिंग हो जाती है। यह दुर्लभ जेनेटिक म्युटेशन के कारण होती है जब विकृत एक्स-एक्स या एक्स-वाय जीन्स माता-पिता दोनों से बच्चों में स्थान्तरित हो जाते हैं। तो, जब दोनों विकृत जीन्स, माता-पिता प्रत्येक से एक। आपस में मिलते हैं, यह सेरूलोप्लाज्मिन एंजाइम को प्रभावित करते हैं जो शरीर में कॉपर के मेटाबॉलिज्म के लिए जिम्मेदार है। इसलिए, यह अक्सर उन दंपत्तियों में देखा जाता है जब नजदीकी रिस्तेदारों में वैवाहिक संबंध बनते हैं।
नई दिल्ली स्थित हेल्दी ह्युमन क्लीनिक के सेंटर फॉर लीवर ट्राप्लांट एंड गैस्ट्रो साइंसेज के डायरेक्टर डॉ. रविंदर पाल सिंह मल्होत्रा का कहना है कि आमतौर पर, स्वस्थ्य शरीर में, लीवर अतिरिक्त और अनावश्यक कॉपर को फिल्टर कर लेता है और इसे यूरीन के द्वारा बाहर निकाल देता है। लेकिन विल्सन रोग में, लीवर अतिरिक्त कॉपर को बाइल में नहीं निकाल सकता जैसा कि इसे करना चाहिए। तो, जो सब कॉपर लीवर में जमा होने लगता है, अंगों को क्षतिग्रस्त करता है और इसके परिणामस्वरूप, रक्त में अतिरिक्तकॉपर आ जाता है जो विभिन्न अंगों जैसे मस्तिष्क, किडनी, आंखों और लीवर तक पहुंच जाता है और वहां जमा होने लगता है। अगर उपचार न कराया जाए, विल्सन रोग के कारण मस्तिष्क गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो सकता है या लीवर फेलियर हो सकता है और मृत्यु हो सकती है।
लक्षण: विल्सन रोग बहुत दुर्लभ है और विश्वभर में यह लगभग तीस हजार में से एक व्यक्ति को प्रभावित करता है। किस अंग में कॉपर का जमाव हुआ है, उसके आधार पर विल्सन रोग के लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं। कोई भी जो विल्सन रोग के साथ जन्म लेता है, उसमें इस डिसआर्डर के लक्षण 6-20 वर्ष के आयुवर्ग में दिखाई देने लगते हैं। कईं दुर्लभ मामलों में, लक्षण 40 वर्ष की उम्र में दिखाई देते हैं। हालांकि अगर इसका डायग्नोसिस और उपचार जल्दी करा लिया जाए, तो अच्छा रहता है, लेकिन अधिकतर मामलों में इस डिसआर्डर का पता नहीं चल पाता क्योंकि इस रोग में लक्षणों का कोई सेट पैटर्न नहीं होता है। इसके साथ ही, विल्सन रोग के लक्षण और संकेत इसपर निर्भर कर सकते हैं कि शरीर का कौन सा अंग प्रभावित हुआ है।
कुछ सामान्य लक्षणों में व्यक्तित्व में बदलाव आना, बोलने संबंधी विकृति, लैंगिक-अति सक्रियता, अनियंत्रित आक्रामक व्यवहार, अवसाद आदि। लेकिन अगर लीवर में कॉपर का जमाव हो जाता है, शरीर ये लक्षण दिख सकता है जैसे लीवर में सूजन, पेट की आंतरिक परत में तरल का जमाव, कमजोरी, थकान महसूस होना, वजन कम होना, एनीमिया, अमीनो एसिड का उच्च स्तर, प्रोटीन। युरिक एसिड, उल्टी, भूख न लगना, बार-बार पीलिया होना, हाथों व पैरों की मांसपेशियों में ऐंठन आदि। विल्सन रोग को गंभीर होने से रोकने में जल्दी डायग्नोसिस और समय रहते इसका उपचार सबसे महत्वपूर्ण है। जबकि इसके कईं लक्षण जैसे पीलिया, एडेमा दूसरी स्थितियों जैसे किडनी और लीवर में भी दिखाई दे सकते हैं। विभिन्न जांचों के द्वारा डॉक्टर इस रोग की पुष्टि करते हैं।
डायग्नोसिस: ब्लड टेस्ट की सहायता से, लीवर के एंजाइमों में असामान्यता, रक्त में कॉपर का स्तर, सेरूप्लाज्मिन (एक प्रोटीन जो रक्त के द्वारा कॉपर ले जाता है) का स्तर, रक्त में शूगर का स्तर कम होना आदि की जांच की जाती है। कॉपर के जमाव को जानने के लिए यूरीन टेस्ट किया जा सकता है। यहां तक की इस रोग से पीडि़त 50 प्रतिशत लोगों में कॉर्नियल कैसेर-फ्लेइसचेर रिंग होती है। लीवर में कॉपर की मात्रा का पता लगाने के लिए लीवर की बायोप्सी की जाती है। बायोप्सी के द्वारा इस रोग के लक्षणों और लीवर को कितनी क्षति पहुंची है उसका पता भी लगाया जाता है। अगर आप विल्सन रोग के शिकार हैं, तो आप और आपके परिवार के सदस्यों में भी इस रोग का शिकार होने का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए, डीएनए के नमूने की जेनेटिक टेस्टिंग का इस्तेमाल किया सकता है। इस बात की पुष्टि करने के लिए कि रोगी के भाई-बहन या परिवार के दूसरे सदस्य तो इसके शिकार नहीं हैं। अगर आप गर्भवती हैं और आपको विल्सन रोग है तो आप भविष्य में नवजात शिशु की स्क्रनिंग की योजना भी बना सकते हैं।
उपचार: डॉ. रविंदर पाल सिंह मल्होत्रा का कहना है कि विल्सन रोग का सबसे पहला उपचार है कि चेलाटिंग थेरेपी के द्वारा शरीर से अतिरिक्त कॉपर को निकालना। इसमें सम्मिलित है जीवनभर दवाईयों जैसे डी-पेनिसिलामाइन या ट्राइनटिन हाइड्रो क्लोराइड का इस्तेमाल करना, दवाईयां जो उतकों से कॉपर को निकालने में सहायता करती हैं या जिंक एसिटेट। लेकिन इन दवाईयां के कुछ निश्चित साइड इफेक्ट्स भी होते हैं जैसे बुखार, रैशेज, किडनी बोन मैरो से संबंधित समस्याएं। इसके अलावा, मरीजों को सलाह दी जाती है कि ऐसे भोजन का सेवन न करें जिसमें कॉपर की मात्रा अधिक हो, जिसका अर्थ है खाद्य पदार्थों जैसे मशरूम, सुखे मेवे, चॉकलेट, लीवर और शेलफिश को अपने डाइट चार्ट में से निकल दें। इसके साथ ही, पानी में भी कॉपर की मात्रा अधिक होती है अगर आप ऐसे स्थान पर होते हैं जहां कॉपर युक्तपानी के स्त्रोत होते हैं या अगर पानी को कॉपर के बर्तन में स्टोर कर के रखा जाए।
अगर इसके बारे में पहले ही पता चल जाए और उपचार करा लिया जाए, तो विल्सन रोग से पीडित व्यक्ति भी पूरी तरह सामान्य जीवन सकता है। इसके विपरीत अगर इस डिसआर्डर को डायग्नोज करने में समय लगता है-इसका अर्थ है सीवर के क्षतिग्रस्त होने का खतरा बढ़ता जाता है। इसके साथ ही, इसके कारण तंत्रिका तंत्र संबंधी गड़बडियां हो सकती हैं और मरीज का मस्तिष्क प्रभावित हो सकता है, यह घातक भी हो सकता है। हालांकि जिन मरीजों का विल्सन रोग के कारण एक्यूट लीवर फेलियर हो जाता है, उन्हें लीवर ट्रांसप्लांट की सलाह दी जाती है। लीवर ट्रांसप्लांट इस रोग को प्रभावी तरीके से ठीक कर देता है, इसके बाद जीवित रहने की संभावना भी काफी बढ़ जाती है।