कांग्रेस दिल्ली में आप से गठबंधन को तैयार, अन्य राज्यों में तालमेल से परहेज

मो. कामरान
नई दिल्ली। कांग्रेस पार्टी ने दिल्ली में आम आदमी पार्टी(आप) के साथ गठबंधन को लेकर चल रही चर्चा पर शुक्रवार को अपना रुख स्पष्ट करते हुए कहा कि वह राजधानी में गठबंधन को तैयार हैं लेकिन इस गठबंधन का अन्य राज्यों तक विस्तार नहीं करना चाहती। वर्तमान में दिल्ली में दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन की कोई स्थिति नहीं है और जल्द ही कांग्रेस सातों सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित करेगी। दिल्ली प्रदेश कांग्रेस प्रभारी पीसी चाको ने पत्रकार वार्ता में बताया कि दिल्ली में आप और कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का गठबंधन के तहत साथ काम करना आसान नहीं होगा। यह जानते हुए भी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के कहने पर भाजपा सरकार को सत्ता से हटाने के लिए पार्टी गठबंधन को तैयार हो गई। आप की ओर से संजय सिंह उनके साथ गठबंधन को लेकर संपर्क में थे। पीसी चाको ने कहा कि आप दिल्ली के अलावा अन्य राज्यों में भी गठबंधन चाहती है। कांग्रेस पार्टी का स्पष्ट मानना है कि अन्य राज्यों में जमीनी और व्यवहारिक स्थिति अलग है। ऐसे में उन राज्यों में गठबंधन संभव नहीं है। इसी मुद्दे पर दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन नहीं हो पाया है। चाको ने कहा कि कांग्रेस अब भी दिल्ली में गठबंधन के लिए तैयार है। चाको ने बताया कि आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में अपनी स्थिति को देखते हुए गठबंधन के लिए हाथ बढ़ाया था। पिछली बार दिल्ली में नगर निगम के चुनावों में आप को 26 प्रतिशत और कांग्रेस को 21 प्रतिशत वोट मिले थे। इसी को देखते हुए कांग्रेस और आप में क्रमशः तीन और चार सीटों पर लड़ने को लेकर सहमति बनी थी। कांग्रेस आप को मर्जी की चार सीटें भी देने को तैयार थी लेकिन आप गठबंधन का अन्य राज्यों में भी विस्तार चाहती थी। इसी बीच कांग्रेस पार्टी में आज पूर्व केन्द्रीय मंत्री कृष्णा तीरथ फिर से शामिल हो गई। वह तीन बार विधायक और दो बार दिल्ली से सांसद रहीं हैं और केन्द्र में कैबिनेट मंत्री भी रही हैं। वह कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गई थी। उल्लेखनीय है कि आप पार्टी लगातार कांग्रेस के साथ गठबंधन को लेकर सार्वजनिक बयान जारी करती रही है। दोनों पार्टियों का मानना है कि अकेले लड़ने का दोनों पार्टियों को नुकसान होगा और भाजपा को लाभ मिलेगा। पिछले आम चुनावों में दिल्ली की सातों सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी। इनमें से छह सीटें ऐसी थी जिनमें दोनों पार्टियों का वोट शेयर भाजपा से ज्यादा था।